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शनिवार, मार्च 26, 2011

तुझसे कहते कैसे.....



रात अश्कों का आना जाना तुझसे कहते कैसे 
अपने दर्दो-गम का फ़साना तुझसे कहते कैसे

के तुझे फुर्सत नहीं गैरों की महफ़िल से मिली 
कुछ अपना दिल नहीं माना तुझसे कहते कैसे

हुआ ज़िक्र जो यूँ बे-वफाओं का तो खामोश रहे 
नाम तेरा भी था उनमे आना तुझसे कहते कैसे

तेरे गम लिए आँख रखीं पुरनम खुद की हमने 
हंसने का तो था बस बहाना तुझसे कहते कैसे

तेरे ख्यालों से ही थी मुक़म्मल तहरीर अपनी 
था ग़ज़लों का तू उन्वाँ जाना तुझसे कहते कैसे

तर्के-ताल्लुक नहीं कोई मरासिम नहीं ''राज़''
के नहीं रहा अब वो ज़माना तुझसे कहते कैसे

10 टिप्‍पणियां:

  1. तेरे गम लिए आँख रखीं पुरनम खुद कीं हमने

    हंसने का तो था बस बहाना तुझसे कहते कैसे

    *********************************

    उम्दा शेर..........

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  2. बहुत खूब! ख़ूबसूरत गज़ल...

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  3. हर एक शेर उम्दा. बेहतरीन गज़ल.

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  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. संगीता जी......शुक्रिया, रचना को सम्मिलित करने हेतु..

    सुरेन्द्र भाई.....आभार

    कैलाश साब....शुक्रिया

    रचना जी......शुक्रिया

    अजय जी....हौसला देते रहें..आभार

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