भले तू यूँ मेरा दिल दुखा के जा
पर जाना है तो सच बता के जा
यकीं करना है तो कर मुझ पे
गर शक है तो वो मिटा के जा
तेरे दिल में भी खलिश ना रहे
शिकवे-गिले सब जता के जा
मेरी यादें तुझे ना तड़पायें कहीं
वो पुराने ख़त सारे जला के जा
तेरे बगैर हम यहाँ जियेंगे कैसे
जाते-२ कोई हुनर सिखा के जा
मुझे तो ये तीरगी पसंद है बहुत
चाँद को फिर कहीं छिपा के जा
हर आँख अश्कबार कर दे "राज़"
बज़्म में ऐसी ग़ज़ल सुना के जा
bahut badhiyaa.
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंलिखने का ये गुर सीखा कहाँ से
लिखने से पहले हमको ये बता के जा |
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ..
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
kalamdaan.blogspot.com
बहुत ही खुब लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंआप सभी का शुक्रिया जो आपने अपना कीमती वक़्त दिया.....आभार
जवाब देंहटाएंKhoob Kaha...Behtreen Panktiyan
जवाब देंहटाएंसच कह अहि जाना है तो शक मिटा के और सच बता की जाना ही बेहतर है ...
जवाब देंहटाएंअच्छे शेर हैं ...
Raj kaanpuri ji, kya kaha jaye aap ki rachna ki tarif me,koi shbd nahi mil rhe,bahut hi umda likhte hai aap....bdhaai sweeharen...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी, दिगम्बर भाई और अवंतिका जी....आभार अपना बहुमूल्य समय देने के लिए ...
जवाब देंहटाएंजाते जाते सच बता के जा सरे गिले - शिकवे मिटा के जा
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन प्रस्तुति
लाजवाब..
मेरे ब्लॉग "संस्कार कविता संग्रह" में आपका हार्दिक स्वागत है |