उसकी याद का जब कभी सैलाब चले है
मेरी आँखों से बे-सबब फिर आब चले है
ये दोस्त जान लेते हैं हर बात जेहन की
इन पे कब कहाँ हंसी का हिजाब चले है
दिल अपना हार के हम सिकंदर हो गये
इश्क के खेल में उल्टा ही हिसाब चले है
हौसलों के दम से ही वो यहाँ रौशन हुए
जुगनुओ के साथ कब आफताब चले है
लौटके वो आ रहा ये खबर जबसे मिली
तबसे धड़कन दिल की ये बेताब चले है
लफ़्ज़ों में हुई हो दिल की हाल-ए-बयानी
तो ग़ज़ल में कहाँ बहर का आदाब चले है
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंati uttam , sundar bhavabhivykti
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
very Nice....:)
जवाब देंहटाएंआप सभी का शुक्रिया.....हौसला अफजाई करते रहें....
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