दर्द का रुक जाए ये कारोबार तो अच्छा हो
उसकी यादों में आये इतवार तो अच्छा हो
फिर वो मेरे गम, मेरी वहशत को समझेगी
उसे भी गर होये ये मुआ प्यार तो अच्छा हो
जितने भी हैं गिले शिकवे उन्हें बचाए रखिये
मोहब्बत में रहे जो कुछ उधार तो अच्छा हो
जिसकी आमद से रौशन ये चराग होने लगें
घर आये वो शाम अब के बार तो अच्छा हो
ये खिज़ा का मौसम कब तलक रहे यूँ जवाँ
इन गलियों से भी गुजरे बहार तो अच्छा हो
उखड़ती हुयी हर सांस बस ये सोचती होगी
के मर ही जाये अब ये बीमार तो अच्छा हो
कासे में कुछ ना डालो मगर वो दुआयें देता है
फकीर जैसा हो अपना रोजगार तो अच्छा हो
कुछ भले बदले ना बदले इस मुल्क में मगर
बदल जाये दिल्ली की सरकार तो अच्छा हो
अजीब शख्स हो "राज़" जो गम में हँसते हो
तुम जैसा हो गर कोई फनकार तो अच्छा हो
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
जवाब देंहटाएंकुछ बदले न बदले इस मुल्क में मगर
जवाब देंहटाएंबदल जाए दिल्ली की सरकार तो अच्छा है ,बहुत खूब राज जी ,क्या कहने
vaah ,badhiya lagi gazal...
जवाब देंहटाएंआपकी ये पोस्ट पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट "श्रद्धांजलि : देव आनंद " पर भी आप एक बार अवश्य पधारे। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग पता है:- harshprachar.blogspot.com