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सोमवार, नवंबर 12, 2012

समझो मेरे हालात ये अशआर देखकर



यूँ ही ना जानो इन्हें तुम बेकार देखकर 
समझो मेरे हालात ये अशआर देखकर 

उसके चेहरे पे रुकी हैं कब से मेरी नज़रें   
जलता हूँ अपनी ताकते दीदार देखकर 

मुहब्बत के फिर पढने लगता हूँ कशीदे 
आऊं अल्हड़ सा जब मैं किरदार देखकर  

देखो तो ये बावरा सा इधर उधर फिरे है 
चाँद भी आया है उसका रुखसार देखकर 

फिर वो ही बासी-पुरानी ख़बरें मिलेंगी 
क्या करना है छोड़िये अख़बार देखकर.

अपने वोट की कीमत पहचान बसर तू 
अबके संसद में भेजना सरकार देखकर

कैसे तुम्हे ''राज़'' अपनी ग़ज़ल सुना दें 
तुम दाद भी देते हो तो फनकार देखकर 

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