वही तन्हाई, वही ख़ामोशी, वही बियाबान मंजर
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर
जल उठे हैं वही पुराने कुछ अरमान दिल के अंदर
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर
कुछ सुलगती हुयी साँसे तो कुछ तरसती निगाहें
और पतझड़ की रुत में जैसे सब वीरान हुयी राहें
आहों के जलते शोले और उसपे आँखों का समंदर
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर
मौसमों की बर्फ़बारी और रातों की लंबी बेक़रारी
एक एक लम्हा भी सदियों पे हो रहा हो जैसे भारी
शायद ये पूछने के रहता हूँ कैसे तुझसे बिछड़कर
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर
कानों को मेरे छूकर के जब भी ये गुजरेंगी हवाएं
नाम तेरा मुझको ही हर दफे बस जायेंगी बताएं
हिचकियों में ही होगी अब तो यहाँ अपनी गुजर
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर
ati sundr abhivykti
जवाब देंहटाएंहिचकियों में ही होगी अब तो यहाँ अपनी गुजर
जवाब देंहटाएंलौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर
वाह ... बहुत खूब।
laazwaab.....
जवाब देंहटाएंLazawaab....
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