लफ़्ज़ों की दहशत अजब काम ना कर दे
ये कलम चली है कहीं कोहराम ना कर दे
बात कडवी मगर सच ही तो रहती हमेशा
चुप बैठा हूँ, कहीं क़त्ल-ए आम ना कर दे
सन्नाटे में गुजर इक हद तक ही है वाजिब
हद जरा भी बढ़े तो जीना हराम ना कर दे
लत शराब औ' शबाब की अच्छी नहीं होती
कहीं ये घर बार तक तेरा नीलाम ना कर दे
जो सियासी लोग हैं उनसे जरा बच के रहिये
इनसे दोस्ती कहीं आपको बदनाम ना कर दे
bahut badhiya...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंदो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
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जवाब देंहटाएंअंदाजे बयाँ आपका भी है कातिल,
जवाब देंहटाएंशब्दों का कहीं कत्ले-आम न कर दे |
अति उतम प्रस्तुति
टिप्स हिंदी में : गूगल ऐनालाइटिक को अपने ब्लॉग पर कैसे स्थापित करें
बहुत ही बढियां गजल...
जवाब देंहटाएं:-)
बढ़िया ग़ज़ल....
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