खिड़कियाँ खोलो के अन्दर रौशनी आये
वीरान घर में फिर से कुछ जिंदगी आये
ख्वाब आँखों के आवारा हुये जाते हैं देखो
शब् से कहो के उनको थोड़ा डांटती आये
खुशबू-ए-अहसास जो लफ़्ज़ों में ढले तो
सफहों पे महकती हुई फिर शायरी आये
मकसद वजूद का यूँ हो जाये मुक़म्मल
काम आदमी के जब कभी आदमी आये
यूँ तो खुदा से कोई दुश्मनी नहीं हैं मगर
रास हमे खुदाई से ज्यादा काफिरी आये
सहरा के सुलगते दिल ये ही सोचते होंगे
कभी दरिया के हक में भी तश्नगी आये
"राज़" कुछ नहीं आरज़ू इक सिवा इसके
के उसकी बांहों में ही सांस आखिरी आये
bahut badhiya ...shuru ke dono sher bahut pasand aaye...
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा गजल ...
जवाब देंहटाएंआभार !!
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ