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शनिवार, दिसंबर 22, 2012

लम्हों लम्हों में बस ढलता रहा...




लम्हों लम्हों में बस ढलता रहा 
ये वक़्त रुका न, फिसलता रहा 

जिसने न की कभी क़दर इसकी 
वो उम्र भर बस हाथ मलता रहा   

गयी रुतें तो, वो पत्ते भी चल दिए 
सहरा में तन्हा शजर जलता रहा 

दोस्त समझ के जिसे साथ रखा 
आस्तीनों में सांप सा पलता रहा 

उसकी यादों की गर्मी में, बर्फ सा  
रोज कतरा कतरा मैं गलता रहा 

मंजिल की दीद हुई न कभी मुझे 
ता-उम्र मैं सफ़र पे ही चलता रहा 

उसके जाने का गम तो नहीं पर  
ना लौटने का वादा खलता रहा 

11 टिप्‍पणियां:

  1. उसके जाने गम तो नही पर
    न लौटने का वादा खलता रहा
    उत्कृष्ट पंक्ति
    सादर

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  2. bahut sundar gajal , badhai aapka blog sundar aur accha laga .

    welcome at my blog

    http://sapne-shashi.blogspot.com

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  4. बेनामी22 दिसंबर, 2012

    लाजवाब
    "मंजिल की दीद हुई न कभी
    ता उम्र मैं सफ़र पे ही चलता रहा"

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  5. उसके जाने का गम तो नहीं पर.
    ना लौटने का वादा खलता रहा.

    बहुत सुंदर गज़ल.

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  6. usske jane ka ghum to nhi
    par aane wada khalta raha
    wahhh...bemisaal....
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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  7. Badhai ...Behtreen Rachna ke liye....
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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  8. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया ....
    अपनी नजरो करम यूँ ही बनाये रखें ....

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