मयकश के जामों की शराब सी लगती है
जिन्दगी अब मुझको खराब सी लगती है
जिसको भी देखो लूटने को बेचैन हुआ है
तवायफ के हुश्न-ओ-शबाब सी लगती है
रोज इबादत यूँ तो उस खुदा की करता हूँ
फिर भी मुझे बंदगी अजाब सी लगती है
मुहब्बत की ये पहेली कुछ अजब रही है
सवाल पे सवाल, बेहिसाब सी लगती है
कुसूर उन निगाहों का है या खता मेरी है
के शाम ढलके भी आफताब सी लगती है
इश्क में तबाही के मंजर क्या हुए "राज"
मेरी सूरत बस उनके जवाब सी लगती है
bahut khoob...har sher lajawab hai..
जवाब देंहटाएंshukriya bhai......
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