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रविवार, फ़रवरी 05, 2012

जब किसी की याद ले के आती है हवा



फिर कुछ ज्यादा ही बल खाती है हवा 
जब किसी की याद ले के आती है हवा  

तूफां सी चले तो कहीं खामोश ही पले
रंग कितने खुद में ही दिखाती है हवा 

ऐसे ही नहीं वो सभी उड़ते हैं फलक पे 
परिंदों के हौसलों को भी बढाती है हवा 

जिद पे आ जाए तो सुने ना किसी की 
दस्त के दस्त खाक में मिटाती है हवा 

जब भी उदासियों के मंज़र सुलगते हैं  
देके प्यार से थपकियाँ सुलाती है हवा 

लौटती है जब कभी यूँ उसके शहर से 
फ़साने फिर सब उसके सुनाती है हवा 

लफ्ज़ मौसमों से उधार मिलते हैं जब 
खूबसूरत सी ग़ज़ल कोई गाती है हवा 

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