मुझे लगती बियाबान जैसी है
अब जिंदगी इम्तेहान जैसी है
ज़मीं की खाक है औकात मेरी
वो लड़की तो आसमान जैसी है
फितरते-दिल को क्या कहिये
किसी परिंदे की उड़ान जैसी है
हर रोज दर्द ले के बढ़ जाती है
अब ये सांस भी लगान जैसी है
तुझे सोचता हूँ तो टूट जाता हूँ
तेरी याद तो बस थकान जैसी है
बिना सिक्कों से ये चलती नहीं
के रिश्तेदारी भी दुकान जैसी है
मौत तो मुक्क़मल ही हैं यहाँ पे
अपनी रूह ही बे-ईमान जैसी है
माँ की दुआ ही परदेस में यारों
सुकून-ओ- इत्मिनान जैसी है
'राज़' कहें क्या 'आरज़ू' अपनी
यहाँ पे वही तो पहचान जैसी है
छोटी बहर की बहुत बढ़िया गजल!
जवाब देंहटाएंfitrate dil ki kya kahie...kisi parinde ki udan jesi hi...waaah waah kya gajal hai...bahut khubsurat...sabhi ki chhutti kar di aapne,,,,badhai
जवाब देंहटाएंबिना सिक्कों से ये चलती नहीं
जवाब देंहटाएंके रिश्तेदारी भी दुकान जैसी है
मौत तो मुक्क़मल ही हैं यहाँ पे
अपनी रूह ही बे-ईमान जैसी है
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
शानदार गजल। आभार।
जवाब देंहटाएंफितरते दिल को क्या कहिये
जवाब देंहटाएंकिसी परिंदे की उड़ान सी है ... सच है
मयंक साब.......शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआरती जी.......शुक्रिया
संगीता जी.......शुक्रिया
अमित जी.......शुक्रिया
रश्मि जी........शुक्रिया