ये चेहरा खुदा ने फुरसत में बनाया होगा
फिर देख इसे खुद पे बहुत इतराया होगा
जुल्फों की उधारी काली घटा से ली होगी
आरिज के लिए महताब को मनाया होगा
होठों पे तबस्सुम गुलाब से रख दी होगी
आँखों की शक्ल में सागर सजाया होगा
इस जबीं पे फरिश्तों ने सजदे किये होंगे
काफिरों ने भी दुआ में हाथ उठाया होगा
और किसी दम जो तुम चले गए होगे यूँ
आईना भी देख कर तुम्हे शरमाया होगा
उदास तीरगी भी कहीं छुप ही गयी होगी
रुख से नकाब यूँ तुमने जब हटाया होगा
क्या कहे अब अल्फाज़ "राज" के तुमको
इन्हें ग़ज़ल कहने में पसीना आया होगा
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राज साहब बड़ा ज़ोरदार लिखा है... सच है एक उम्र में यही होता है..
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंजनदुनिया जी...शुक्रिया दीपक भाई....शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसंगीता जी....शुक्रिया
समीर भाई...शुक्रिया
आप सभी का आभारी हूँ..
आप नियमित मेरी रचनाओं तक आते हैं..
और अपने बहुमूल्य शब्द कहते हैं...
आभार......खुश रहिये.....