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गुरुवार, मई 13, 2010

जा रहे हो तो इक जरा इधर देख लेना




जा रहे हो तो इक जरा इधर देख लेना 
तुम्हारे बगैर है ये तन्हा घर देख लेना 

जाने कैसी ख्वाहिश इनमे दे रखी है 
तुमको जो तकती हैं नजर देख लेना 

लौटोगे इस उम्मीद में ये शहर रहेगा 
वक़्त-ए-रुखसत पे मुड़कर देख लेना 

सूनी गलियां बस तुझको ही पुकारेंगी 
सूने आँगन की दीवारों-दर देख लेना 

कहीं जब दिल कोई दुखायेगा तुम्हारा 
मेरी भी रहेंगी ये चश्मे तर देख लेना 

यूँ तो चुप रहेगा ये गुलशन उम्र भर 
मगर होगा मुंतजिर शजर देख लेना 

माना के भुला दोगे ये जज्बा है तुम में 
याद करके ख्यालो में मगर देख लेना

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