तो आँखों में अश्क उतर आयेंगे उस रोज़
तेरी कोई ग़ज़ल लेकर आयेंगे जिस रोज़
हम उन्हें भी लफ़्ज़ों के पैकर में ढाल देंगे
तेरी याद के नक्श उभर आयेंगे जिस रोज़
मेरे दोस्तों फिर बद्दुआ देना तुम मुझको
इस दिल के ज़ख्म भर आयेंगे जिस रोज़
फिर रौशन होंगे यहाँ पे हौसलों के चराग
रकीब लेके हवाएं इधर आयेंगे जिस रोज़
और माँ की दुआएं उसे याद आएँगी बहुत
छोड़ कर के गाँव, शहर आयेंगे जिस रोज़
तब ''राज़'' की भी ईद-ओ-दिवाली मनेगी
भुलाकर रंजिशें वो घर आयेंगे जिस रोज़
सुंदर सार्थक रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसच अहि माँ की दुआएं हमेशा याद आती हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का ...
वाह...बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...हर शेर मनमोहक....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव लिए पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़ल ....वाह
जवाब देंहटाएंआप सभी का तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ जो आप सभी ने अपना कीमती वक़्त इस नाचीज को दिया... खुश रहिये..
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