आँखों से जब कई रतजगे निकले
तब जाके वस्ल के हसीं गुल खिले
हया की दीवार फिर भी बनी रही
यूँ तो हमसे बहुत खुल-खुल मिले
मेरे शानो पे रख सर रोये क्या वो
गुम हो गए फिर सब शिकवे गिले
रूहों तक दोनों की साँसे उतर गयीं
रात भर हुए थे बस यही सिलसिले
बारिशों में भीगे बदन रहे थे दोनों
अरमान दिलों में जाने कितने पले
सहर कनखियों से जब आई नजर
ना हम छोड़ें ना छुड़ाकर के वो चले
वाह..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसंगीता जी......शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
संजय भाई...बहुत बहुत शुक्रिया... खुश रहिये
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