हम काफिरों के लिए दुआ हो तुम
यूँ लगता है के जैसे खुदा हो तुम
शाम तुम्हारे पलकों के साए में है
सहर इक बहुत खुशनुमा हो तुम
तुमसे मिलके शजर खुश होते हैं
सहरा की धूप में ठंडी हवा हो तुम
गुलों की रौनक तुमसे ही तो है
चमन की राहत-ऐ-फजा हो तुम
तुम्हारे नाम की भी कसमे हैं
दीवानों की अहदे-वफ़ा हो तुम
क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......
जवाब देंहटाएंसंजय भाई...शुक्रिया... जज्बातों को समझने के लिए..
जवाब देंहटाएंसंगीता जी......अवश्य....आपका आभार......जो आपने महत्व दिया मेरी रचना को...शुक्रिया