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रविवार, जुलाई 25, 2010

खुदा हो तुम....


हम काफिरों के लिए दुआ हो तुम 
यूँ लगता है के जैसे खुदा हो तुम 

शाम तुम्हारे पलकों के साए में है 
सहर इक बहुत खुशनुमा हो तुम 

तुमसे मिलके शजर खुश होते हैं  
सहरा की धूप में ठंडी हवा हो तुम 

गुलों की रौनक तुमसे ही तो है 
चमन की राहत-ऐ-फजा हो तुम 

तुम्हारे नाम की भी कसमे हैं  
दीवानों की अहदे-वफ़ा हो तुम 

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......

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  2. संजय भाई...शुक्रिया... जज्बातों को समझने के लिए..

    संगीता जी......अवश्य....आपका आभार......जो आपने महत्व दिया मेरी रचना को...शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं

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