आँखों में ख्वाब सी पली "आरज़ू"
रात भर शम्मा सी जली "आरज़ू"
कभी फलक का तरन्नुम ठहरा हुआ
कभी बर्क के साए में ढली "आरज़ू"
उसके छूने से गुलों में खुशबू हुई
खुबसूरत सी महकती कली "आरज़ू"
रंग-ए-शफक उन आँखों से लिया
सहर ने फिर खुद पे मली "आरज़ू"
सुकून के दो लम्हे हुए हासिल वहां
बन गयी खुदा की जब गली "आरज़ू"
बेखुदी में ' राज ' ने कहा क्या क्या
ग़ज़लों में आई जब चली "आरज़ू"
badiya aarzoo
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachana ...........
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल लेकिन (सहर ने फिर ख़ुद ्पे मली आरजू) इस लाइन में मुझे व्याकरण दोष नज़र आ रहा है।
जवाब देंहटाएंकिशोर जी.....शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअना जी.....शुक्रिया
संगीता जी.....शुक्रिया
संजय भाई.....शुक्रिया
संजय जी.....जी जरुर.. शुक्रिया कमियों की तरफ इशारा करने के लिए...
अगली बार कोशिश करूँगा... गलतियाँ ना हों....आभार... यूँ ही साथ देते रहें