के इक गुनाह सा कर गया कोई
इस दिल से जो उतर गया कोई
उसे बस जाने की जिद पड़ी थी
क्या पता कहीं पे मर गया कोई
हवा ये बहकी बहकी फिरे देखो
शायद यहाँ से गुजर गया कोई
चांदनी शब् भर रोती रही यहाँ
इलज़ाम उसके सर गया कोई
खुद को ढूंढ़ते ये कहाँ आ गया
लौट कर जो ना घर गया कोई
उस गली के चक्कर नहीं लगते
शायद "राज़" सुधर गया कोई
खुद को धुन्दते ये कहाँ आ गया,
जवाब देंहटाएंलौट कर जो ना घर गया कोई.
बहुत खूब हर एक शेर लाजवाब.
हवा ये बहकी बहकी फिरे देखो,
शायद यहाँ से गुजर गया कोई.
मज़ा आ गया. बधाई.
बहुत खूब हर एक शेर लाजवाब.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गजल!
जवाब देंहटाएंबधाई!
kaun guzra ki hawa hai bahki... waah
जवाब देंहटाएंरचना जी......शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसंजय भाई.....शुक्रिया
मयंक जी......शुक्रिया
रश्मि जी.......शुक्रिया