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शनिवार, अप्रैल 23, 2011

माँ की दुआओं को अपने सर रख लेना



माँ की दुआओं को अपने सर रख लेना 
परदेस जाना तो आँख में घर रख लेना 

कहाँ हासिल है शहर में ये सोंधी खुशबू
साथ गली की खाक मुश्त भर रख लेना 

पोंछ लेना आँखों को अपनी मगर तुम 
कुछ आईनों को भी साफ़ कर रख लेना 

जिंदगी में कुछ काम नहीं आया करता 
हौसलों से भरी कोई रहगुजर रख लेना 

बस छाँव ही नहीं, वो देता है बहुत कुछ 
आँगन में कोई बूढ़ा सा शजर रख लेना 

चाहना टूटकर के जिसे भी चाहना तुम
फासला दरमियाँ थोड़ा मगर रख लेना 

मानिंद-ए-चराग जलना ऊम्र भर को यूँ 
पर कुछ हवाओं का भी तो डर रख लेना 

उसका जिक्र भी हुआ तो महकेगी बहुत 
फिर चाहे ग़ज़ल 'राज़' बे-बहर रख लेना

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