दिल की बज़्म से हंस कर निकला
दर्द अपना कुछ मुख़्तसर निकला
जिसे अपने अजीजों में रखा मैंने
खंज़र उसका ही पीठ पर निकला
शब् यादों की तीरगी में कट गयी
फिर माह क्या ता-सहर निकला
तू नहीं गर तो तेरा ख्याल ही सही
कोई तो अपना हमसफ़र निकला
कुछ ख्वाब, वीरानी और वहशत
यही सामान बस मेरे घर निकला
देखीं थीं जिसने औरों में खामियाँ
वो ''राज़'' खुद ही बे-बहर निकला
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..मन को छू जाती है
जवाब देंहटाएंगज़ब की दिल को छूती गज़ल्।
जवाब देंहटाएंकुछ ख्वाब ,वीरानी और वहशत
जवाब देंहटाएंयहि सामान बस मेरे घर निकला
बेहतरीन शेर ....उम्दा ग़ज़ल
बहुत सुन्दर गज़ल...
जवाब देंहटाएंbahut achhi likhi hai Sanju.
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
bhut hi sundar ,,,,,,apne dard ko bhut hi achchhe shwad diye apne
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल पेश करने के लिए बधाई!
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