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शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

दर्द अपना कुछ मुख़्तसर निकला



दिल की बज़्म से हंस कर निकला 
दर्द अपना कुछ मुख़्तसर निकला 

जिसे अपने अजीजों में रखा मैंने 
खंज़र उसका ही पीठ पर निकला 

शब् यादों की तीरगी में कट गयी 
फिर माह क्या ता-सहर निकला 

तू नहीं गर तो तेरा ख्याल ही सही 
कोई तो अपना हमसफ़र निकला 

कुछ ख्वाब, वीरानी और वहशत 
यही सामान बस मेरे घर निकला 

देखीं थीं जिसने औरों में खामियाँ 
वो ''राज़'' खुद ही बे-बहर निकला 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..मन को छू जाती है

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  2. गज़ब की दिल को छूती गज़ल्।

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  3. कुछ ख्वाब ,वीरानी और वहशत
    यहि सामान बस मेरे घर निकला
    बेहतरीन शेर ....उम्दा ग़ज़ल

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  4. bhut hi sundar ,,,,,,apne dard ko bhut hi achchhe shwad diye apne

    जवाब देंहटाएं
  5. बेनामी06 फ़रवरी, 2011

    सुन्दर गजल पेश करने के लिए बधाई!

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