जोर बाजुओं में बे-हिसाब आये
तोड़कर पत्थर फिर आब आये
फलक को नाप आये कदमो से
हम जहाँ पहुंचे कामयाब आये
एक मुद्दत से वीरान है ये आँखे
तू आये या तो तेरा ख्वाब आये
सूरत-ए-चाँद और भी हसीं लगे
जुल्फ बन के जब हिजाब आये
सवाल तश्नगी का जब कभी उठे
जवाब इतना के बस शराब आये
वो ख्वाहिशें रोज ख़त लिखती हैं
कभी हो के ख़ुशी का जवाब आये
बात कहना फनकारी नहीं "राज़"
बात तब है जब इन्किलाब आये
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल लिखते है आप. सारे शेर उच्च स्तर के हैं.
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