अब ये आहें कब मेरी असर लाती हैं
दिल से निकलती हैं, बिखर जाती हैं
आप मर भी जाओ, अपनी बला से
वो मय्यत में भी बन-संवर आती हैं
हमे समझाती है निगाहें वाइज जो
कभी मैकदे पे वो भी ठहर जाती हैं
नामाबार को देखूं तो अब करूँ क्या
ख़त में वो इन्कार ही भिजवाती हैं
नजरों को भी कुछ काम तो चाहिए
एक से हटे तो दूजे पे ठहर जाती हैं
यही तो दुनियांदारी है। बहुत सही लिखा है।
जवाब देंहटाएंसुमन जी और रचना जी..दिल से आभारी हूँ जो आपने वक़्त दिया.....
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