वो जो महफ़िल में हमसे कुछ परे बैठे हैं
हम तो उनसे मिलने की आस धरे बैठे हैं
यूँ तो कभी होते नहीं वो हमख्याल हमसे
एक हम हैं जो जमाने से उनपे मरे बैठे हैं
हम तो शुमार करते हैं अजीजों में उनको
ना जाने क्यूँ वो हमसे अदावत करे बैठे हैं
के शायद किस्मत ही तंग है कुछ अपनी
सिवा हमारे ही यहाँ सब उनके वरे बैठे हैं
कभी तो होगा उनका रुख अपनी जानिब
यही इक ख्वाब"राज"आँखों में भरे बैठे हैं
bahut hi sunder rachna, dard chhoo gaya hriday ko...
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen