आफताब छूने चले हो जल जाओगे
मैं तुमको जरा सा सोच भर लूँ
तुम मेरे लफ़्ज़ों में ढल जाओगे
दिल के घर में इक मेहमाँ ही तो थे
पता था आज नहीं तो कल जाओगे
तुम पर यकीं कर तो लूँ पर कैसे
मौसम ही हो पक्का बदल जाओगे
मरासिम हवाओं से जोड़ लो तो जरा
चरागों फिर तुम भी संभल जाओगे
ये मेरे गम हैं जो जवाब देते ही नहीं
मैं रोज़ पूछता हूँ किस पल जाओगे
बहुत ही बढ़िया और बहुत ही सुन्दर गजल....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...बहुत सुन्दर गजल...
जवाब देंहटाएंआभार आप सभी का.. हौसला अफजाई करते रहें...
जवाब देंहटाएं