दरिया जब समंदर में उतर गया होगा
वो अपने वजूद से ही बिखर गया होगा
ये शब् के पहलू में नमी कैसी आ गयी
अश्क ले कर कोई ता-सहर गया होगा
मानूस नहीं ये दिल यहाँ यूँ ही हुआ है
वादा आने का कोई तो कर गया होगा
दिले-गुलशन में अब गुंचे नहीं खिलते
उनकी याद का तूफां गुजर गया होगा
खामियां बताने में ये ज़माना कम नहीं
इल्जाम तो माह के भी सर गया होगा
अपनी आँखों को ही जलाया होगा ''राज़''
चराग खुशियों का बुझ अगर गया होगा
दिले-गुलशन में अब गुंचे नहीं खिलते
जवाब देंहटाएंउनकी याद का तूफां गुजर गया होगा
खामियां बताने में ये ज़माना कम नहीं
इल्जाम तो माह के भी सर गया होगा
खूबसूरत गज़ल
बहुत ही शानदार शेर हैं सीधे दिल से निकले हैं।
जवाब देंहटाएंkya baat hai bhai...bahut dino baad padha hai tumhe..bahut khoob.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन,खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं.........वाह वाह, क्या बात है कमाल की प्रस्तुति..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
हर पंक्ति लाजवाब ...।
जवाब देंहटाएंbahut sunder.
जवाब देंहटाएंsundar gazal.
जवाब देंहटाएंumda sher.
अपना कीमती वक़्त इस नाचीज को देने के लिए....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सभी का.....खुश रहिये