शब् के जख्मों को कुछ सहलाना चाहिए
जो शाम बिखरे तो चराग जलाना चाहिए
नाम इश्क की जमात में लिखवा दिया है
फिर मौसमे-दर्द में भी मुस्कराना चाहिए
थक जाओ कभी जब हवा नापते-नापते
अपने घर तुम्हे फिर लौट जाना चाहिए
और खुदा--खुदा कहने से कुछ नहीं होता
सच्ची इबादत हो तो सर झुकाना चाहिए
छोड़ दो ये नफे-नुकसान की बातें करना
इस दिल को तो यूँ ही आजमाना चाहिए
सोचती होगी वो कासिद को फिर देखके
इस बार ख़त उनका जरुर आना चाहिए
चाँद तारों तक तो अपनी पहुँच नहीं होती
उनकी ही गली का चक्कर लगाना चाहिए
जो तुम्हारी जफा के बदले वफ़ा किया करे
"राज"उनको पलकों पे ही बिठाना चाहिए
"बहुत बढ़िया...वाकई में..."
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल.....खूबसूरत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंअमित जी......शुक्रिया
जवाब देंहटाएंशानू जी........शुक्रिया
संगीता जी .....शुक्रिया
महफूज भाई.....शुक्रिया
आप सब ने वक़्त निकला और यहाँ तक आये....
दिल से आभारी हूँ.....खुश रहिये इस दुआ के साथ.....
बढ़िया , शाम बिखरे तो दिले दागदार की बातें
जवाब देंहटाएंऐसे ही तो रोशन होता है सबेरे तक का सफ़र
शारदा जी......बहुत खुबसूरत अलफ़ाज़ आपके.....
जवाब देंहटाएंयहाँ तक आने के लिए शुक्रिया....हौसला देती रहिएगा....
खुश रहिये...
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