माँ की आँखों से फिर आसूं टाले नहीं जाते
जब बच्चों के गले में दो निवाले नहीं जाते
ताउम्र पाल-पोस कर जिनको, बड़ा किया
बच्चों से वही बूढ़े माँ-बाप पाले नहीं जाते
ये तो जिगर है अपना, जो रौशन हैं वो भी
जुगुनुओं के घर तो कोई उजाले नहीं जाते
अब के सियासत में यहाँ पे ग़द्दार बहुत हैं
परचम वतन के जिनसे संभाले नहीं जाते
बुलंदी अक्सर हौसलों से मिला करती है
समन्दर में यूँ ही मोती खंगाले नहीं जाते
इश्क में खुद को परवाना कहते हैं वो पर
वफ़ा में कभी शम्मा के हवाले नहीं जाते
और "राज" जैसे भी हैं ठीक ही हैं यहाँ तो
क्या हुआ जो मस्जिद या शिवाले नहीं जाते
दिल को छू लेने वाली गज़ल
जवाब देंहटाएंआपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
जवाब देंहटाएंअस्वस्थता के कारण करीब 30 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,