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शनिवार, अप्रैल 25, 2009

वो मुझको जब ख़त लिखती है..

वो मुझको जब ख़त लिखती है 
दिल की हर हसरत लिखती है 
नींद से बोझिल आँखे उसकी 
तनहा-दिल और फुर्कत लिखती है....
वो मुझको जब ख़त लिखती है

मुझको तो सब गैर लगे है 
सावन रुत से बैर लगे हैं 
कोई न मौसम अपना सा है 
कब होगी अब कुर्बत लिखती है....
वो मुझको जब ख़त लिखती है

मुझमे न अब मैं रहती हूँ 
हर शय में तुमको तकती हूँ 
मरने से पहले आ जाना 
मिल जाए गर फुर्सत लिखती है....
वो मुझको जब ख़त लिखती है 

कितना और सताओगे तुम 
कब मिलने को आओगे तुम 
अपना मुझे बनाओगे क्या 
होगी कब ये रहमत लिखती है....
वो मुझको जब ख़त लिखती है 

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