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शनिवार, अप्रैल 25, 2009

आँखे नम नहीं करता




मैं यूँ ही अपनी आँखे नम नहीं करता 
हँसता रहता हूँ खुद पे सितम नहीं करता 

न आये मेरी अयादत को कोई तो क्या कुछ नहीं 
मैं तो आईने को भी अपना महरम नहीं करता 

बेवफा होना उसकी मजबूरी रही होगी शायद 
वरना रस्मे -उल्फत वो मुझसे कम नहीं करता 

खुदा है तो अपने वजूद का असर भी छोडेगा 
समर हर दरख्त पे बहारो का मौसम नहीं करता 

शब् है तो दर पे सहर भी आयेगी कभी "राज"
चराग जलाता हूँ शाम से मातम नहीं करता .

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