
दर्द हैं , आंसू हैं , वहशत -ए -आलम है
मैं हूँ , घर है और तेरी याद का मौसम है ...
किस तरह से मैं खुद पे यकीं कर लू
होठो पे तो नगमे हैं , साँसे बरहम है ...
हौसलों को उसने कुछ आजमाया है इस कदर
के इस दम तो दम है , अगले में बेदम है ...
गुनाह उसका भी तो सर मेरे ही आ जाए
दिल ना टूटे किसी का ये दुआ हरदम है ...
फजाए देखकर मुझको क्यूँ रोने लगी हैं
अभी तो कुछ कहा नहीं , इनको किसका गम है ...
"राज" हंसते हैं तो गुमा होता है लेकिन
पलकों के सिरहाने तो मेरे भी शबनम है ...
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