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शनिवार, अप्रैल 25, 2009

सांचे में ढल जायेगा..




हिज्र का मौसम भी यूँ ही बदल जायेगा 
टूटे हर दिल में चराग सा जल जायेगा...

आशिकों के ग़मों की हद देखेगा जमाना 
जमीं तो जमीं आसमां भी पिघल जायेगा...

करनी हो गर यारी तो सेहरा से तुम करो 
मंजर फजाओं का एक पल में बदल जायेगा...

सोचता हूँ उसको सीने से लगा के रो ही लूं 
जाने किस घडी वो दिल से निकल जायेगा...

करके हौसला तूफां में उतार देना तुम उसे 
बहते बहते वो शख्स खुद ही संभल जायेगा...

तुमको जो चाहिए उसको बना रखना तुम 
कच्ची मिट्टी है 'राज' सांचे में ढल जायेगा...

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