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शनिवार, अप्रैल 25, 2009

रातें.....

हिज्र की रातें विसाल की रातें 
उलझे सुलझे सवाल की रातें

नींद में चलना ख्वाब में जगना 
कैसी हैं ये कमाल की रातें

शाम से दोनों बेचैन बहुत हैं 
तनहा दिल और बवाल की रातें

आलम-ए-फुर्कत ना पूछो मुझसे 
कटी हैं कैसे ख्याल की रातें

इजहार-ए-वफ़ा हम कर ना पाए 
रह गयी अब बस मलाल की रातें

इश्क में मिलती "राज" ये नेमत 
दर्द-ओ-गम और शलाल की रातें 

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