मेरा गम यूँ मेरे दिल के ही अंदर रहा
फिर भी मैं तो बड़ा मस्त कलंदर रहा
ये सोच के इश्क में हार जाया किये थे
के कब जीतकर भी खुश सिकंदर रहा
जाने क्या रंजिश बादलों की रही हमसे
के सारा शहर भीगा घर मेरा बंजर रहा
वो तेरा हाथ छुड़ाना और ख़ामोशी मेरी
ता--उम्र आँखों में बस यही मंजर रहा
जब भी नफे नुकसान का हिसाब देखा
मेरी पीठ पे, मेरे अपनों का खंजर रहा
हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..सुन्दर गज़ल
जवाब देंहटाएंसंजय भाई...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसंगीता जी....शुक्रिया
वंदना जी....रचना को शामिल करने हेतु आभार
सुन्दर ग़ज़ल है.. बहुत खूब
जवाब देंहटाएंयूं तो पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है लेकिन यह शेर मुझे ज्यादा पसंद आया
जवाब देंहटाएंजाने क्या रंजिश बादलों की रही हमसे,
के सारा शहर भीगा घर मेरा बंजर रहा।
नूतन जी....आप आये यहाँ तक.....शुक्रिया..रौनके महफ़िल होती रहिएगा...
जवाब देंहटाएंमहेंद्र वर्मा जी.... बहुत बहुत आभार जो आपने कीमती वक़्त दिया मेरी इस रचना को..शुक्रिया