सेहरा में बन कर तुम फुहार चले आना
करेंगे फिर इश्क का कारोबार चले आना
जो गम ज़माने में गर दे जाए तुम्हे कोई
ना सोचना कभी तुम एक बार चले आना
और थक जाओ कभी हमसा ढूंढ़ते--ढूंढ़ते
मिलेंगे वँही करते हम इंतज़ार चले आना
मुझे मालूम है तन्हा जीना यूँ आसान नहीं
जिंदगी का सफ़र हो जाए दुश्वार चले आना
ये चाँद मुआ देखकर तुम्हे भरता है आहें
छत पे हो उससे जरा होशियार चले आना
मेरे शानो पे रखके सर सुकूँ पा लेना तुम
जहन-ओ-दिल हो जब बेक़रार चले आना
कभी"राज़"जो तुम्हे सोचे यूँ ही तन्हाई में
होकर तुम खुशनुमा इक बहार चले आना
भावों को इतनी सुंदरता से शब्दों में पिरोया है
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
Sanjay kumar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
shukriya
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