मुश्किल-ए-जीस्त जब यूँ ही रवाँ होने लगी
ऐ अज़ल अब तू बता क्यूँ मेहरबाँ होने लगी
वहशते-इश्क़ से फिर हम भी निकलने लगे
जह्नो-दिल से याद जो उनकी धुआँ होने लगी
जुस्तजू-ए-सुकूँ में जब दिन सारा कट गया
शाम होते ही तलाश-ए-आशियाँ होने लगी
शक्लो-सूरत थी नहीं, मैकप किया लाख का
खाक को भी अब देख लो आसमाँ होने लगी
लब हमारे चुप रहे औ उसने भी कुछ ना कहा
राज़ की हर बात पर आँखों से अयाँ होने लगी
बज़्म में हमने जब यूँ जिक्र उसका कर दिया
यार सब कहने लगे,नज़्म जाविदाँ होने लगी
बारिश-ए-हिज्र देखो दोनों जानिब खूब बरसी
कुछ यहाँ होने लगी फिर कुछ वहाँ होने लगी
"राज"तो बेबस रहे अब ये किसकी सुनते फिरें
जंग दिल और धडकनों के दरमियाँ होने लगी
अच्छी ग़ज़ल है ...पसंद आई।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया ग़ज़ल पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें:-
ऐ कॉमनवेल्थ तेरे प्यार में
याद जब उनकी दिल से धुआं होने लगी ...वाह
जवाब देंहटाएंमहेंद्र जी............शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसंजय भाई........शुक्रिया
सत्य जी...........शुक्रिया
शारदा जी.........शुक्रिया
आप सभी ने वक़्त दिया....आभार..