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बुधवार, अक्तूबर 13, 2010

किस्मत का लिखा कुछ नहीं होता


किस्मत का लिखा कुछ नहीं होता 
कहने से खुदा खुदा कुछ नहीं होता 

अपनी अपनी फितरत है इंसान की 
करना वफ़ा या जफा कुछ नहीं होता 

घर की ग़ुरबत में भी सुकून रखिये 
जिंदगी में और बजा कुछ नहीं होता 

जिसकी सीरत यहाँ खुबसूरत बहुत 
उसके लिए आईना कुछ नहीं होता 

पैसा नहीं, कमाना है तो नाम कमा
रोज-ए-अज़ल बचा कुछ नहीं होता 

जो रखते हैं जिगर फौलाद का यहाँ पे 
उनको जमीं--आसमाँ कुछ नहीं होता  

मंदिर मस्जिद की छोड़ दे बातें अब 
किसी का उनसे भला कुछ नहीं होता 

वो कभी ना कभी तो मान जायेंगे ही 
बस उनसे दिल लगा, कुछ नहीं होता 

उब जाना जब उस महफ़िल से "राज़" 
तो कह देना अलविदा कुछ नहीं होता 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल राज जी.. बहुत खूब...

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  2. acchi gazal hai bhaai
    zara sa behr pr dhyaan de, khayal bahut acche hain

    जवाब देंहटाएं
  3. शुक्रिया...नूतन जी...आपकी आमद से बज़्म में रौनक हो गयी..

    दीप...शुक्रिया..कोशिश जारी है ..यूँ ही हौसला देती रह

    जवाब देंहटाएं

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