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बुधवार, सितंबर 02, 2009

देता हूँ हर घड़ी अब मैं दुआ उसको



देता हूँ हर घड़ी अब मैं दुआ उसको
उसने ना करी पर मिले वफ़ा उसको

तारीक-ऐ-शब् हासिल हो मुझी को
नसीमे सहर पर बख्शे खुदा उसको

कदर करो गर कभी रहे रूबरू तुमसे
बिछड़ेगा तो रहोगे देते सदा उसको

अहदें किसी से तुम ना किया करना
जब तक के यूँ पाओ ना निभा उसको

किसी से इश्क हो तो चुप नहीं रहना
थाम के कलाई बस देना बता उसको

लबों पे कभी कोई मुस्कान खिला दे
उसे दुआ करना कहना भला उसको

मौसम जो तुमसे कुछ यूँ रूठा बैठा है
सब्ज रुतो में 'राज' लेना बुला उसको

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