
सोचा करता हूँ ये तोहमत भी उठा लूँ मैं
इक रोज उसे यूँ ही, सीने से लगा लूँ मैं
हलकी हलकी बूंदें जो फलक पे बरसी हों
उसको मिलने फिर, इक शाम बुला लूँ मैं
आलम पे अब्रों का, जब साया बिखरा हो
मौसम की बाहों से इक लम्हा चुरा लूँ मैं
नींद मुझे जब भी उसकी बांहों में आये
ख्वाब सुनहरे सब पलकों में सजा लूँ मैं
हवा के झोंके से जो उसकी खुशबू आये
गुलशन के गुल को हमराज बना लूँ मैं
'राज' जो दिल में हैं तुम सुनने ना आओ
गज़लों में ही दिल की हर बात बता लूँ मैं
neend jab muze uski baho mai aa jaye ............. bahut achcha likha hai aapne
जवाब देंहटाएंshukriya jnaaab aapka jo aapne waqt diya..bas aise hi hausla dijiyega.
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