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रविवार, जून 07, 2009

मुझे मनाना नहीं आता....



तुम रूठ जाती हो तो मुझे मनाना नहीं आता
झूठ का खूबसूरत आईना दिखाना नहीं आता...

सच कहता हूँ तो तुम्हारी आँखे नम देखता हूँ
क्या सूरत करूँ मैं, तुमको बहलाना नहीं आता...

इक पागल हूँ, शायद लोग सच ही कहते हैं
गुनाह करता हूँ और मुकर जाना नहीं आता...

तुम हंस दो यही तमन्ना लिए फिरता हूँ
सिवा तुम्हारे मुझे मुस्कराना नहीं आता...

मेरे अल्फाजो को थोडी अहमियत तो दे दो
किसी और ढंग से मुझे जतलाना नहीं आता...

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