
करी कोशिश कभी लब पे जो तेरे गीत गाने की
दर्द उभर आया फिर से जुबाँ पे इस दीवाने की ...
जज्बात -ए - गम मैं छुपा के कैसे रख लू यारो
नहीं बख्शी खुदा ने नेमत मुझे मुस्कराने की ...
तेरी गलियों से उठ आये तो यही दर मिला मुझको
बात मस्जिद की नहीं काफिर बात है मयखाने की ...
अब दवा की सूरत में बस ये दर्द मिला करता है
दिल को रास आने लगी हैं राहें उस गमखाने की ...
उसकी खूबसूरती यूँ ही नहीं हुआ करती है "राज"
शमा ढलती नहीं जब तक खाख में परवाने की .
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