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बुधवार, जनवरी 02, 2013

ता-जिन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे.....




'आप' से 'तुम' और फिर तुम से 'तू' करे 
हमसे वो इस तरह से कभी गुफ्तगू करे 

इक बार आ कर बस लगे यूँ ही सीने से  
ता-जिन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे 

ये वो शय है जो के मिलती है नसीबों से 
मोहब्बत की कोई कभी ना जुस्तजू करे 

सारे ऐब-ओ-हुनर आ जाएंगे फिर नज़र 
कभी आईने को जो तू खुद से रु-ब-रु करे

कुछ नहीं हासिल है रंजिश से मेरे दोस्त 
बढाये नफरतें को ये और जाया लहू करे 

बड़ा दुखे है दिल फिर इस प्यारे शहर का 
तार-तार जब कोई दिल्ली की आबरू करे  

उस को दिल से है "राज़" निकालना ऐसे   
फूलों से जुदा जैसे कोई के रंग-ओ-बू करे 

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