'आप' से 'तुम' और फिर तुम से 'तू' करे
हमसे वो इस तरह से कभी गुफ्तगू करे
इक बार आ कर बस लगे यूँ ही सीने से
ता-जिन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे
ये वो शय है जो के मिलती है नसीबों से
मोहब्बत की कोई कभी ना जुस्तजू करे
सारे ऐब-ओ-हुनर आ जाएंगे फिर नज़र
कभी आईने को जो तू खुद से रु-ब-रु करे
कुछ नहीं हासिल है रंजिश से मेरे दोस्त
बढाये नफरतें को ये और जाया लहू करे
बड़ा दुखे है दिल फिर इस प्यारे शहर का
तार-तार जब कोई दिल्ली की आबरू करे
उस को दिल से है "राज़" निकालना ऐसे
फूलों से जुदा जैसे कोई के रंग-ओ-बू करे
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनाएं
फुर्सत मिले तो ...मुस्कुराहट पर ज़रूर आईये