लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, मार्च 19, 2012

चाँद किसी को देखने के बहाने निकलता है



रात को थोड़े ही रौशन बनाने निकलता है 
चाँद किसी को देखने के बहाने निकलता है

जब सोचता हूँ उसकी याद मिटा दूँ जेहन से 
ख़त इक पुराना फिर सिरहाने निकलता है 

कभी आँखों से बहा, कभी सफ्हे पे उतरा है 
दर्द भी बदल बदल के ठिकाने निकलता है 

कौन है यहाँ पर जो रुदाद-ए-गम सुने मेरी  
हर कोई अपनी कहानी सुनाने निकलता है 

क़ज़ा के पहलू में जब रूठ जाती है जिंदगी 
फिर कहाँ कोई उसको मनाने निकलता है 

माना के जुबाँ तल्ख़ है ज्यादा ही "राज" की 
पर हर लफ्ज़ कुछ नया बताने निकलता है 

3 टिप्‍पणियां:

Plz give your response....