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रविवार, जून 19, 2011

इश्क में यूँ हर शख्स पागल नहीं होता



अहसास तेरा मुझको जिस पल नहीं होता 
साँसों का सिलसिला मुक़म्मल नहीं होता 

बस तेरी सूरत ही रक्स करती हैं आँखों में 
दूसरा चेहरा तो इनमे आजकल नहीं होता 

उसे आसान लगा है मुझको भूल जाना पर  
वो है के मेरी सोच से भी ओझल नहीं होता 

आजार-इश्क की यूँ कोई दवा नहीं मिलती 
चारागारों से भी तो मसला हल नहीं होता 

जब आँखों से बे-सबब अब्र का कारवां चले 
रोकने का फिर उसे कोई आँचल नहीं होता 

"राज़" खामोश हैं, तो क्या है अजीब इसमें 
अरे इश्क में यूँ हर शख्स पागल नहीं होता 

14 टिप्‍पणियां:

  1. उसे आसान लगा है मुझको भूल जाना पर
    वो है के मेरी सोच से भी ओझल नहीं होता .....बहुत सुन्दर!!

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  2. बस तेरी सूरत ही रक्स करती हैं आँखों में
    दूसरा चेहरा तो इनमे आजकल नहीं होता

    बहुत खूब ..सुन्दर गज़ल

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  3. आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी।
    --
    पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. जो सोच से ओझल ना हो सके , उसे भुलाये कैसे ..
    एक ही चेहरा है हर कदम , दूसरा इसमें समाये कैसे ...

    बेहद खूबसूरत ग़ज़ल !

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  6. बस तेरी सूरत ही रक्स करती है आँखों में,
    दूसरा चेहरा तो इनमे आजकल नहीं होता.

    बेहद खूबसूरत गज़ल पेश की है. आभार.

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  7. bahut sunder ,dil ko chunewali gajal.bahut badhaai aapko.



    pleasevisit my blog .thanks.

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  8. बहुत खूब बेहतरीन लिखा है हर लफ्ज़

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  9. निधी जी ....शुक्रिया...
    संगीता जी....हमेशा की तरह आप आना नहीं भूले...आभार
    मयंक जी.....शुक्रिया
    वंदना जी......आभार
    वाणी जी......शुक्रिया
    रचना जी....शुक्रिया
    निवेदिता जी...शुक्रिया
    प्रेरणा जी.....शुक्रिया
    रंजना जी....शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  10. भुत ही लाजवाब गज़ल है ...जैसे इश्क की कोई दास्ताँ ...

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  11. अच्छे तेवर हैं आपके बनाए रहिये ,इश्क में यूं ही पागल रहिये .आपके ब्लॉग पे आके अच्छा लगा .

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  12. दिगंबर जी....शुक्रिया
    वीणा जी.....शुक्रिया
    वीरू भाई.....शुक्रिया...आपकी आमद हौसला देती रहेगी....

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