अहसास तेरा मुझको जिस पल नहीं होता
साँसों का सिलसिला मुक़म्मल नहीं होता
बस तेरी सूरत ही रक्स करती हैं आँखों में
दूसरा चेहरा तो इनमे आजकल नहीं होता
उसे आसान लगा है मुझको भूल जाना पर
वो है के मेरी सोच से भी ओझल नहीं होता
आजार-इश्क की यूँ कोई दवा नहीं मिलती
चारागारों से भी तो मसला हल नहीं होता
जब आँखों से बे-सबब अब्र का कारवां चले
रोकने का फिर उसे कोई आँचल नहीं होता
"राज़" खामोश हैं, तो क्या है अजीब इसमें
अरे इश्क में यूँ हर शख्स पागल नहीं होता
उसे आसान लगा है मुझको भूल जाना पर
जवाब देंहटाएंवो है के मेरी सोच से भी ओझल नहीं होता .....बहुत सुन्दर!!
बस तेरी सूरत ही रक्स करती हैं आँखों में
जवाब देंहटाएंदूसरा चेहरा तो इनमे आजकल नहीं होता
बहुत खूब ..सुन्दर गज़ल
आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएं--
पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
जो सोच से ओझल ना हो सके , उसे भुलाये कैसे ..
जवाब देंहटाएंएक ही चेहरा है हर कदम , दूसरा इसमें समाये कैसे ...
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल !
बस तेरी सूरत ही रक्स करती है आँखों में,
जवाब देंहटाएंदूसरा चेहरा तो इनमे आजकल नहीं होता.
बेहद खूबसूरत गज़ल पेश की है. आभार.
बेहतरीन ग़ज़ल ..... आभार !
जवाब देंहटाएंbahut sunder ,dil ko chunewali gajal.bahut badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंpleasevisit my blog .thanks.
बहुत खूब बेहतरीन लिखा है हर लफ्ज़
जवाब देंहटाएंनिधी जी ....शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी....हमेशा की तरह आप आना नहीं भूले...आभार
मयंक जी.....शुक्रिया
वंदना जी......आभार
वाणी जी......शुक्रिया
रचना जी....शुक्रिया
निवेदिता जी...शुक्रिया
प्रेरणा जी.....शुक्रिया
रंजना जी....शुक्रिया
भुत ही लाजवाब गज़ल है ...जैसे इश्क की कोई दास्ताँ ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब.....बेहतरीन ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंअच्छे तेवर हैं आपके बनाए रहिये ,इश्क में यूं ही पागल रहिये .आपके ब्लॉग पे आके अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी....शुक्रिया
जवाब देंहटाएंवीणा जी.....शुक्रिया
वीरू भाई.....शुक्रिया...आपकी आमद हौसला देती रहेगी....