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सोमवार, मई 02, 2011

बे-बात पर ही खफा होगा ''राज़''



बे-बात पर ही खफा होगा ''राज़''
या शायद भूल गया होगा ''राज़''

नाम का ही तो काफिर था बस 
दिल में उसके खुदा होगा ''राज़''

वो शाम छत पे टहल गयी होगी 
चाँद सहर तक जगा होगा ''राज़''

हिचकियाँ रात भर आती रहीं यूँ 
किसी ने याद किया होगा ''राज़''

चल आईने से ही कुछ जिक्र करें 
उसको कुछ तो पता होगा ''राज़''

''आरज़ू'' को सबसे छुपा के रख ले 
नजर लगने का शुबहा होगा ''राज़''

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही शानदार गज़ल्।

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  2. बहुत खूबसूरत गज़ल..हरेक शेर मर्मस्पर्शी..

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  3. बहुत सन्दर गजल!
    पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!

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  4. yaadon ki aati rahi hichkiyaan
    yaa raat bhar dil rota raha....

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  5. बहुत खूबसूरत गज़ल| धन्यवाद|

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