उसकी जुल्फों से ही शैतानी हुई जाती है
फलक पे जो ये घटा सुहानी हुई जाती है
के चांदनी बिखर के ज़मीं तलक आ गयी
खामोश दरिया में इक रवानी हुई जाती है
किसी चेहरे पे जाके नहीं टिकती हैं आँखें
वही इक सूरत बस पहचानी हुई जाती है
चली जाए जो बे-धड़क छत पे वो अपनी
मुए चाँद को बहुत परेशानी हुई जाती है
पकड़ लूँ हाथ जो सरे-राह कहीं मैं उसका
शर्म से बस फिर पानी-पानी हुई जाती है
मैं उसे खुदा कहूँ या करूँ इबादत उसकी
क्यूँ यार तुम्हे इतनी हैरानी हुई जाती है
"राज़" करे ना गर कहीं जिक्र-ए-''आरज़ू''
ग़ज़ल में जैसे कोई बेईमानी हुई जाती है
umda gazal ....
जवाब देंहटाएंhar sher sahaj-saral aur behtareen...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (5-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंshabd chayan va bhavon men akrupata ,gazak ka nihitarth hota hai , mafi chahenge ,koyi thhes ,ya durbhavana ,mera mantavya nahin hai .prayas achha hai. shukriya ji .
जवाब देंहटाएंbahut achchhi hai aapki prastuti .
जवाब देंहटाएंपकड़ लूँ हाथ जो सरे-राह कहीं मैं उसका
जवाब देंहटाएंशर्म से बस फिर पानी-पानी हुई जाती है
मैं उसे खुदा कहूँ या करूँ इबादत उसकी
क्यूँ यार तुम्हे इतनी हैरानी हुई जाती है ..waah kya line likhe hai aapne...sidhe dilo dimag me bas gai hai...badhai...
wah har ek aashar me dam hai. umda gazal.
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र भाई...
जवाब देंहटाएंवंदना जी.....
रचना जी....
अनुपमा जी.....
आरती जी....
अनामिका जी......
आप सभी का शुक्रिया....
आपकी आमद हौसला देती रहती है... यूँ ही साथ बनाये रखें....दुआओं के साथ
और उदय भाई खास तौर से....हकीकत का आईना दिखलाते हुए... मुझे अच्छा लगा... खुश रहिये
sunder, achha laga tumhe padhna.
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen