ता-उम्र मेरे साथ होते रहे हादसात
गुनाह था मेरा होना इंसां की जात
सिसकते हुए सारे चराग बुझ गए
जाने किस खौफ से गुजरी ये रात
इश्क की बिसात का था ये हासिल
हर चाल में मिली मात-मात-मात
अपने हर्फों में कैसे उतारूँ मैं इसको
मुख़्तसर नहीं ये किस्सा-ए-हयात
गम में भी कोई यूँ मुस्कराए फिरे
हर किसी को आसाँ नहीं है ये बात
मंजर-ए-पुरकैफ का दीदार नहीं है
हजारों गम लिए मिली है कायनात
खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंयहाँ आपका स्वागत है
पीड़ा गत वर्ष की
बस यही अपराध मै हर बार करता हूँ
जवाब देंहटाएंआदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ
सुन्दर प्रस्तुति…………नव वर्ष की शुभकामनाएँ।
संगीता जी...
जवाब देंहटाएंवंदना जी...
शुक्रिया आप दोनों का...