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बुधवार, दिसंबर 22, 2010

शाम के साए में कोई बादल जैसे


शाम के साए में कोई बादल जैसे 
उसके शानों पे उलझा आँचल जैसे 

सुर्खी फलक पे थी काबिज कुछ यूँ 
गिरा हो उन आँखों से काजल जैसे 

वो खूबसुरत बदन संगमरमरी, वाह 
लगता है पैरहन कोई मलमल जैसे 

उसकी साँसों से हवा यूँ महकी हुई 
घुल गया हो मौसम में संदल जैसे 

सरे बज़्म जिसपे पड़ें नजरें नशीली 
फिरे हर बशर होकर के पागल जैसे 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  2. बेनामी22 दिसंबर, 2010

    बहुत सुन्दर गजल है!

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  3. आप सभी का तहे-दिल से शुक्रिया....

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Plz give your response....