शाम के साए में कोई बादल जैसे
उसके शानों पे उलझा आँचल जैसे
सुर्खी फलक पे थी काबिज कुछ यूँ
गिरा हो उन आँखों से काजल जैसे
वो खूबसुरत बदन संगमरमरी, वाह
लगता है पैरहन कोई मलमल जैसे
उसकी साँसों से हवा यूँ महकी हुई
घुल गया हो मौसम में संदल जैसे
सरे बज़्म जिसपे पड़ें नजरें नशीली
फिरे हर बशर होकर के पागल जैसे
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत सुन्दर गजल है!
जवाब देंहटाएंgajal achhi lagi har sher khubsurat, mubarak ho
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! लाजवाब ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंbahut umda gazel likhi hai aapne.
जवाब देंहटाएंआप सभी का तहे-दिल से शुक्रिया....
जवाब देंहटाएंbahut sndar ...
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